भोपाल। मध्य प्रदेश में शिक्षक और शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के कई स्थानांतरण (Transfer) को लेकर हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई है। हाल ही में, छह ट्रांसफर आदेशों पर स्थगन (Stay) लगा दिया गया है, जो न्यायालय की नज़र में नियम विरुद्ध, द्वेषपूर्ण या मनमाने तरीके से किए गए थे। इनमें से एक मामले में वृद्ध रिश्तेदार की सेवा करने वाले कर्मचारी के स्थानांतरण पर पुनर्विचार करने के भी निर्देश दिए गए हैं।
छिंदवाड़ा: महिला शिक्षक का पद रिक्त न होने पर भी ट्रांसफर
श्रीमती रोजबेला जॉर्ज का ट्रांसफर उस स्कूल में कर दिया गया, जहाँ पद ही उपलब्ध नहीं था। अधिवक्ता अमित चतुर्वेदी ने कोर्ट में तर्क दिया कि यह आदेश द्वेषपूर्ण है और नीति के विरुद्ध है। कोर्ट ने आदेश पर स्टे दे दिया।
टीकमगढ़: उर्दू शिक्षक का उर्दू छात्रों के बिना स्कूल में स्थानांतरण
श्रीमती बानो बेगम को ऐसे स्कूल भेजा गया, जहाँ एक भी छात्र उर्दू नहीं पढ़ता। कोर्ट ने इस पर आपत्ति जताई और मामले का 30 दिन में निपटान करने के निर्देश देते हुए, तब तक ट्रांसफर रोके रखा।
छिंदवाड़ा: परीक्षा से पहले शिक्षक का ट्रांसफर
श्री हेमराज मंगरूले का स्थानांतरण 100 किमी दूर कर दिया गया, जबकि उनकी बेटी 11वीं कक्षा में पढ़ रही है। कोर्ट ने इसे शिक्षा सत्र में विघ्न बताते हुए आदेश पर अस्थायी रोक लगा दी।
पद रिक्त न छोड़ने के नियम का उल्लंघन
श्री संजय कुमार डौंडे का ट्रांसफर 80 किमी दूर कर दिया गया, जिससे उनकी संस्था में कोई लिपिक नहीं बचा। कोर्ट ने बुजुर्ग मां की देखभाल के कारण भी इसे मानते हुए आदेश पर स्टे दिया।
सागर: रिटायरमेंट से पहले ट्रांसफर
श्री सुशील कुमार पांडे का स्थानांतरण रिटायरमेंट से ठीक पहले किया गया। कोर्ट ने इसे अनुचित मानते हुए डीईओ को निराकरण के निर्देश दिए और तब तक आदेश रोका।
वृद्ध रिश्तेदार की सेवा करने वाले कर्मचारी का मामला
श्री राहुल कुमार चौरसिया, जिन पर 75 वर्षीय बीमार बुआ की देखभाल की जिम्मेदारी है, का ट्रांसफर बालाघाट कर दिया गया। कोर्ट ने इस पर पुनर्विचार के आदेश देते हुए, तब तक ट्रांसफर स्थगित कर दिया।
महिला शिक्षक अतिशेष नहीं थी, फिर भी ट्रांसफर
श्रीमती सुरेखा भागवत का ट्रांसफर उनकी स्थिति और पारिवारिक जिम्मेदारियों को नजरअंदाज कर दिया गया। कोर्ट ने मामले का निराकरण होने तक आदेश पर स्टे दिया।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के इन फैसलों ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि ट्रांसफर नीति केवल प्रशासनिक सुविधा के लिए नहीं, बल्कि मानवता और न्याय के संतुलन के साथ लागू की जानी चाहिए। यह मामला शिक्षा विभाग में नियम विरुद्ध स्थानांतरण पर निगरानी और जवाबदेही की आवश्यकता को भी उजागर करता है।


